Hindi - Unseen Pessage 2 ( अपठित गद्यांश और पद्यांश )

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जीवन में बहुत अंधकार है और अंधकार की ही भाँति अशुभ और अनीति है| कुछ लोग इस अंधकार को स्वीकार कर लेते हैं और तब उनके भीतर जो प्रकाश तक पहुँचने और पाने की आकांक्षा थी, वह क्रमशः क्षीण होती जाती है| मैं अंधकार की इस स्वीकृति को मनुष्य का सबसे बड़ा पाप कहता हूँ| यह मनुष्य का स्वयं अपने प्रति किया गया अपराध है| उसके दूसरों के प्रति किए गए अपराधों का जन्म इस मूल पाप से ही होता है| यह स्मरण रहे कि जो व्यक्ति अपने ही प्रति इस पाप को नहीं करता है, वह किसी के भी प्रति कोई पाप नहीं कर सकता है| किन्तु कुछ लोग अंधकार के स्वीकार से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जाते हैं| उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है|

6. इस गद्यांश में 'उपक्रम' का अर्थ है

  • Option : D
  • Explanation : गद्यांश के अनुसार, कुछ लोग बुराइयों और अन्यायों की स्वीकारिता से बचने के लिए उनको अस्वीकार करने में लग जाते हैं, जैसे कि ऐसी प्रवृत्ति होती ही नहीं है और इस तरह जीवन में उनकी यही अस्वीकारिता कार्य बन जाती है|
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निर्देश (प्र.सं. 144-150) निम्नलिखित गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए|

शिक्षा केवल तभी बच्चों के आत्मिक जीवन का एक अंश बनती है, जब कि ज्ञान सक्रिय कार्यों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हो| बच्चों से यह आशा नहीं की जा सकती कि पहाड़े या समकोण चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के नियम आप से आप उन्हें आकर्षित करेंगे| जब बच्चा यह देखता है कि ज्ञान सृजन के या श्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है. तभी वह ज्ञान पाने की इच्छा उनके मन में जागती है| मैं यह चेष्टा करता था कि छोटी आयु में ही शारीरिक श्रम में बच्चों को अपनी होशियारी और कुशाग्र बुद्धि का परिचय देने का अवसर मिले| स्कूल का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यभार है- बच्चों को ज्ञान का प्रयोग करना सिखाना| छोटी कक्षाओं में यह खतरा सबसे ज्यादा होता है कि ज्ञान निरर्थक बोझ बनकर रह जाएगा, क्योंकि इस आयु में बौद्धिक श्रम नई-नई बातें सीखने से ही सम्बंधित होता है|

7. लेखक के अनुसार शिक्षा का अर्थ है

  • Option : A
  • Explanation : शिक्षा का अर्थ केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं है, बल्कि ज्ञान प्राप्त करके उसको अपने अनुभवों एवं प्रयोगों में लाना है|
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8. ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा कब जागती है?

  • Option : D
  • Explanation : जब हम यह जान जाते हैं कि ज्ञान की प्राप्ति से अनेक रचनात्मक या सृजनात्मक कार्य किए जा सकते हैं तथा इन्हीं के द्वारा कठिन शारीरिक श्रम को आसान बनाया जा सकता है, तब हमे ज्ञान प्राप्ति की प्रबल इच्छा होती है|
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निर्देश (प्र.सं. 144-150) निम्नलिखित गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए|

शिक्षा केवल तभी बच्चों के आत्मिक जीवन का एक अंश बनती है, जब कि ज्ञान सक्रिय कार्यों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हो| बच्चों से यह आशा नहीं की जा सकती कि पहाड़े या समकोण चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के नियम आप से आप उन्हें आकर्षित करेंगे| जब बच्चा यह देखता है कि ज्ञान सृजन के या श्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है. तभी वह ज्ञान पाने की इच्छा उनके मन में जागती है| मैं यह चेष्टा करता था कि छोटी आयु में ही शारीरिक श्रम में बच्चों को अपनी होशियारी और कुशाग्र बुद्धि का परिचय देने का अवसर मिले| स्कूल का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यभार है- बच्चों को ज्ञान का प्रयोग करना सिखाना| छोटी कक्षाओं में यह खतरा सबसे ज्यादा होता है कि ज्ञान निरर्थक बोझ बनकर रह जाएगा, क्योंकि इस आयु में बौद्धिक श्रम नई-नई बातें सीखने से ही सम्बंधित होता है|

9. लेखक के अनुसार

  • Option : B
  • Explanation : लेखक दिए गए गद्यांश में इस बात की और संकेत करता है कि शारीरिक श्रम केवल शरीर के द्वारा ही नहीं किया जाए, बल्कि उसमें बुद्धि का प्रयोग भी करना चाहिए, ऐसा करने पर शारीरिक श्रम एवं समय दोनों की खपत की जा सकती है|
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10. गद्यांश के अनुसार ज्ञान कब निरर्थक बोझ बन जाता है?

  • Option : C
  • Explanation : ऐसा ज्ञान प्राप्त करना कि उसका कहीं प्रयोग न किया जा सके, निरर्थक एवं बोझ होता है, जबकि ज्ञान का ऐसा संचय जिसका कि हम अधिकाधिक प्रयोग अपने दैनिक जीवन में कर सकें, बोझ एवं निरर्थक महसूस नहीं होता|
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