जीवन में बहुत अंधकार है और अंधकार की ही भाँति अशुभ और अनीति है| कुछ लोग इस अंधकार को स्वीकार कर लेते हैं और तब उनके भीतर जो प्रकाश तक पहुँचने और पाने की आकांक्षा थी, वह क्रमशः क्षीण होती जाती है| मैं अंधकार की इस स्वीकृति को मनुष्य का सबसे बड़ा पाप कहता हूँ| यह मनुष्य का स्वयं अपने प्रति किया गया अपराध है| उसके दूसरों के प्रति किए गए अपराधों का जन्म इस मूल पाप से ही होता है| यह स्मरण रहे कि जो व्यक्ति अपने ही प्रति इस पाप को नहीं करता है, वह किसी के भी प्रति कोई पाप नहीं कर सकता है| किन्तु कुछ लोग अंधकार के स्वीकार से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जाते हैं| उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है|
6. इस गद्यांश में 'उपक्रम' का अर्थ है
निर्देश (प्र.सं. 144-150) निम्नलिखित गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए|
शिक्षा केवल तभी बच्चों के आत्मिक जीवन का एक अंश बनती है, जब कि ज्ञान सक्रिय कार्यों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हो| बच्चों से यह आशा नहीं की जा सकती कि पहाड़े या समकोण चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के नियम आप से आप उन्हें आकर्षित करेंगे| जब बच्चा यह देखता है कि ज्ञान सृजन के या श्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है. तभी वह ज्ञान पाने की इच्छा उनके मन में जागती है| मैं यह चेष्टा करता था कि छोटी आयु में ही शारीरिक श्रम में बच्चों को अपनी होशियारी और कुशाग्र बुद्धि का परिचय देने का अवसर मिले| स्कूल का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यभार है- बच्चों को ज्ञान का प्रयोग करना सिखाना| छोटी कक्षाओं में यह खतरा सबसे ज्यादा होता है कि ज्ञान निरर्थक बोझ बनकर रह जाएगा, क्योंकि इस आयु में बौद्धिक श्रम नई-नई बातें सीखने से ही सम्बंधित होता है|
7. लेखक के अनुसार शिक्षा का अर्थ है
निर्देश (प्र.सं. 144-150) निम्नलिखित गद्यांश का ध्यानपूर्वक अध्ययन करके इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए|
शिक्षा केवल तभी बच्चों के आत्मिक जीवन का एक अंश बनती है, जब कि ज्ञान सक्रिय कार्यों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हो| बच्चों से यह आशा नहीं की जा सकती कि पहाड़े या समकोण चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकालने के नियम आप से आप उन्हें आकर्षित करेंगे| जब बच्चा यह देखता है कि ज्ञान सृजन के या श्रम के लक्ष्यों की प्राप्ति का साधन है. तभी वह ज्ञान पाने की इच्छा उनके मन में जागती है| मैं यह चेष्टा करता था कि छोटी आयु में ही शारीरिक श्रम में बच्चों को अपनी होशियारी और कुशाग्र बुद्धि का परिचय देने का अवसर मिले| स्कूल का एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यभार है- बच्चों को ज्ञान का प्रयोग करना सिखाना| छोटी कक्षाओं में यह खतरा सबसे ज्यादा होता है कि ज्ञान निरर्थक बोझ बनकर रह जाएगा, क्योंकि इस आयु में बौद्धिक श्रम नई-नई बातें सीखने से ही सम्बंधित होता है|
10. गद्यांश के अनुसार ज्ञान कब निरर्थक बोझ बन जाता है?